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Flower Farming

जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें

जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें

अभी सूरजमुखी की खेती करने का सही समय है. सूरजमुखी की खेती खाद्य तेल के लिए की जाती है. वैसे भी हमारे देश को खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है। आयात को कम करने के लिए सरकार का भी ध्यान सरसों और सूरजमुखी जैसी फसलों पर अधिक है। मार्च के महीने में इसकी बुवाई की जाती है। इसकी बुवाई करते समय याद रखें की खेत में गोबर की खाद, नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए. इसको सूरजमुखी नाम देने के पीछे भी एक रोचक कारण है।एक तो इसका फूल सूरज की तरह दिखता है दूसरा इसका फूल सूरज के हिसाब से घूमता है। आप कह सकते है की इसके फूल का मुँह सूरज की तरफ ही रहता है। सूरजमुखी की खेती किसानों के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है क्योंकि जब खेतों से सरसों, आलू, गेंहूं आदि से खेत खाली होते हैं तो इसकी खेती की जा सकती है। इसमें से जो तेल निकलता है वो बहुत ही पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी एवं जायद तीनो ही मौसमों में की जा सकती है। लेकिन खरीफ में सूरजमुखी पर अनेक रोग कीटों का प्रकोप रहता है। फूल छोटे होते है, तथा उनमें दाना भी कम पड़ता है तथा इतना स्वस्थ भी नहीं होता है, जायद में सूरजमुखी की खेती से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। इस मौसम की सूरजमुखी में मोटा दाना और उसमें तेल की मात्रा भी ज्यादा होती है। ये भी पढ़ें : सरसों की खेती: कम लागत में अच्छी आय

खेत की तैयारी:

मार्च या अप्रैल के महीने में जब खेत दूसरी फसल से खाली होता है तो खेत में इतनी नमी नहीं होती की उसको दूसरी फसल के लिए तैयार कर दिया जाये। इसके लिए पहले खेत को सूखा ही 2 जोत हैंरों या कल्टीवेटर से लगा देनी चाहिए और अगर संभव हो सके तो उसमें प्लाऊ से 8 से 10 इंच गहरी जुताई लगा कर मिटटी को पलट देना चाहिए जिससे कि ऊपर की मिटटी नीचे और नीचे की मिटटी ऊपर आ जाये। उसके बाद उसमें पलेवा ( सूखे खेत में पानी देना) करके जुताई आने पर कल्टीवेटर से 2 से 3 जुताई लगाकर पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत में नमी बनी रहे और समतल भी हो जाये।

उचित जलवायु और मिटटी:

सूरजमुखी के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। इसको बोने का सही समय फ़रवरी से मार्च का दूसरा सप्ताह उचित होती हैं क्योंकि अगर इसके फूल को बीज पकते समय बारिश नहीं होनी चाहिए अगर पकते समय बारिश हो जाती है तो इसको बहुत नुकसान होता है तथा इसकी फसल की गुणबत्ता भी खराब हो जाती है। इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है इसकी फसल को दोमट और रेतीली भुरभुरी वाली मिटटी में उगाना उचित होगा। सर्वप्रथम हमें ध्यान रखना चाहिए की जिस खेत में हम इसे लगा रहे हैं उसमे पानी निकासी की उचित व्यवस्था है की नहीं क्योंकि अगर इसके खेत में पानी भर जाता है तो इसके पेड़ ख़राब होने की संभावना होती है। ये भी पढ़ें : कहां कराएं मिट्टी के नमूने की जांच

उर्वरक की जरूरत:

हम जिस मिटटी में इसे लगा रहे हैं उसमें खाद की मात्रा कितनी है? उचित रहेगा की हम अपनी मिटटी का टेस्ट कराके उसमे जरूरत के हिसाब से ही नाइट्रोजन, फास्फोरस का प्रयोग करना चाहिए फिर भी हमें 80KG नाइट्रोजन और 60KG फास्फोरस का प्रति एकड़ के हिसाब से लेना चाहिए। नाइट्रोजन को खेत में बखेर देना चाहिए तथा जुताई लगा देनी चाहिए और फास्फोरस और पोटास को कुंडों में डालना चाहिए. अगर खेत में आलू की फसली की गई हो तो उसमे खाद की मात्रा 25 से 30 प्रतिशत तक काम की जा सकती है।

बुवाई का ठीक समय:

सूरजमुखी की फसल का सही समय फ़रवरी और मार्च के दूसरे सप्ताह तक होता है। इसकी फसल जून के दूसरे सप्ताह तक पक कर स्टोर हो जानी चाहिए या कहा जा सकता है कि जून के दूसरे सप्ताह तक फसल पक कर तैयार हो जानी चाहिए जिससे की बारिश शुरू होने से पहले घर आ जानी चाहिए। बारिश की वजह से इसमें बहुत नुकसान होता है।

बुवाई से पहले बीज की तैयारी:

बीज को बोने से 12 घंटे पहले भिगो देना चाहिए और बाद में निकाल कर इसे छाया में सुखा देना चाहिए। इसकी बुवाई दोपहर बाद करनी चाहिए जिससे कि इसके बीज को खेत में ठन्डे में उगने के लिए पर्याप्त माहौल मिल सके। गर्मी के मौसम में हमेशा याद रखें ज्यादातर बीजों  को भिगोकर बोने की सलाह दी जाती है क्योंकि गर्मी में तापमान दिन में बहुत ज्यादा होता है इस तापमान में बीज को अंकुरित होने के लिए पर्याप्त नमी नहीं मिल पाती है।

सूरजमुखी की निम्न उन्नत किस्में:

सूरजमुखी की निम्न उन्नत किस्में मार्डन :- इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 6 से 8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसकी उपज समय अवधि 80 से 90 दिन है | इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 90 से 100 सेमी. तक होती है। इस प्रजाति की खेती बहुफसलीय क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।  इस प्रजाति में तेल की मात्र 38 से 40 प्रतिशत होती है। बी.एस.एच.–1 :- इस प्रजाति की उत्पादन 10 से 15 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 95 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 100 से 150 सेमी. तक होती है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 41 प्रतिशत होती है। एम.एस.एच. :- इस प्रजाति की उत्पादन 15 से 18 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 95 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 170 से 200  सेमी. तक होती है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 42 से 44 प्रतिशत होती है। सूर्या :– इस प्रजाति की उत्पादन 8 से 10 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 100 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 130 से 135 सेमी. तक होती है। इसप्रजाति की की खेती पिछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस प्रजाति में तेल की मात्र38 से 40  प्रतिशत होती है। ई.सी. 68415 :- इस प्रजाति की उत्पादन 8 से 10 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 110 से 115 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 180 से 200  सेमी. तक होती है। इसप्रजाति की की खेती पिछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 38 से 40 प्रतिशत होती है।

कीड़े और  रोकथाम:

सूरजमुखी की खेती में कई प्रकार के कीट रोग लगते है, जैसे कि दीमक हरे फुदके (डसकी बग) आदि है। इनके नियंत्रण के लिए कई प्रकार के रसायनो का भी प्रयोग किया जा सकता है। मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर 25 ईसी या फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर 900 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।

कटाई:

सूरजमुखी की फसल एक साथ कटाई के लिए नहीं आती है इसके फूलों को तोड़ने से पहले देखें की वो हलके पीले रंग के हो गए है, तभी इनको तोड़ कर किसी छाया वाली जगह में सूखा लें। इसकी गहाई के दो तरीके हैं एक तो इसको फूल से फूल रगड़ कर भी बीज अलग किया जा सकता है या डंडे से पीट पीट कर निकला जा सकता है या फिर ज्यादा फसल है तो इसको निकालने के लिए थ्रेसर की मदद भी ली जा सकती है।
6 महीने से भी ज्यादा खिलने वाला फूल है गैलार्डिया , जाने सम्पूर्ण जानकारी

6 महीने से भी ज्यादा खिलने वाला फूल है गैलार्डिया , जाने सम्पूर्ण जानकारी

गैलार्डिया को ब्लैंकेट फ्लावर के नाम से भी जाना जाता है।  यह बारहमासी पौधा है , इसकी खेती किसी भी मौसम में की जा सकती है। गैलार्डिया एस्टरेसिया परिवार का एक पौधा है।  इस फूल का नाम फ्रांस के 18 वी सदी के मजिस्ट्रैट maitre Gaillard de Charentonneau के नाम पर रखा गया है, जो की मजिस्ट्रैट होने के साथ भी बहुत ही काबिल वानस्पातिक शास्त्री थे। इस पौधे की ऊंचाई 45 -60 से मी होती है। इन पौधो का ज्यादातर उपयोग घर के लॉन और बालकनी को सजाने के लिए किया जाता है। 

गैलार्डिया फूल की उन्नत किस्में

गैलार्डिया की बहुत सी किस्में ऐसी है , जिन पर सूंदर मेहरून , लाल ,पीले और नारंगी रंग के मिश्रण वाले फूल खिलते है। गैलार्डियन फूल की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है : गैलार्डिया एस्टिवेलिस (वॉल्टेर) एच रॉक , गैलार्डिया एमब्लिओडोन ज गेय मैरून ब्लैंकेट फ्लॉवर , गैलार्डिया अरिस्टेटा पर्श , गैलार्डिया अरिज़ोनिका ऐ ग्रे। इन किस्मो का उत्पादन कर किसान भारी मुनाफा कमा सकता है। 

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गैलार्डिया फूल के बीज कब बोये 

गैलार्डिया की खेती का सही समय फरवरी और मार्च का होता है। इस माह में इस फूल के बीजो की बुवाई की जाती है। बीजो के अंकुरण के लिए सूर्य की रोशनी का उचित तापमान होना आवश्यक है। इन फूलो को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता नहीं रहती है। 30 -40 के दिन के बाद यह बीज सीडलिंग के लिए तैयार हो जाते है। इन्हे गमलों या किसी अन्य पॉट वगेरा में ट्रांसप्लांट कर सकते है। बीज लगाने के लगभग तीन महीने बाद इनमे फूल आना शुरू हो जाते है , साथ ही ये पौधे 6 महीने से अधिक फूल देते रहते है। यानी ठंड के आने तक इन पौधो में फूल लगते रहते है। 

गैलार्डिया फूल की उपज के लिए उपयुक्त मिट्टी कौन सी है ?

गैलार्डिया फूल को वैसे किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है , लेकिन क्षारीय , दोमट और अम्लीय मिट्टी को इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। बीज की बुवाई के लिए पहले खेत को अच्छे से तैयार कर ले , खेत की अच्छे से गुड़ाई करें।  किसानों द्वारा खेत को तैयार करते वक्त गोबर या कम्पोस्ट खाद का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए अच्छे जलनिकास वाली भूमि की आवश्यकता रहती है। 

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गैलार्डिया फूल के लिए उचित तापमान क्या है ? 

गैलार्डिया के फूल के लिए उचित तापमान की आवश्यकता रहती है। गैलार्डिया बीज के अच्छे अंकुरण के लिए 21 डिग्री तापमान की जरुरत रहती है।  फूल की अच्छी ग्रोथ के लिए 20 -30 डिग्री के बीच के तापमान की आवश्यकता रहती है। यह पौधे ज्यादा गर्मी के तापमान को सहन कर लेते है , लेकिन सर्दियों में 10 डिग्री टेम्परेचर से कम का तापमान इस पौधे की बढ़ोत्तरी पर बाधा डाल सकता है। 

गैलार्डिया फूल की देखभाल कैसे करें 

गैलार्डिया के फूल को ज्यादा देखभाल की जरुरत नहीं रहती है। बुवाई के बाद इसमें सिंचाई भी बहुत ही कम मात्रा में की जाती है। गैलार्डिया का पौधा सूखा सहनशील है , इसीलिए इसमें कम पानी की जरुरत पड़ती है। वसंत और गर्मियों में पौधे पर फूल आने लग जाते है , उस वक्त इस पौधे को पानी की जरुरत होती है।  सर्दियों में पौधे की सिंचाई की मात्रा कम कर दी जाती है। 

पौधे की अधिक उपज के लिए अन्य रासायनिक खाद की आवश्यकता नहीं रहती। खेत को तैयार करते समय कम्पोस्ट खाद का उपयोग करें ,वो फसल और भूमि दोनों के लिए बेहतर होता है। साथ ही इस पौधे में कीट और रोग लगने की बहुत ही कम संभावनाएं रहती है।  लेकिन गैलार्डिया फूल में रुट रॉट की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है।  इस रोग से पौधे की जड़े सड़ने लगती है , यह ज्यादा पानी के प्रभाव से भी हो सकता है , इसीलिए इसकी खेती के लिए  जल निकासी का प्रबंध होना आवश्यक है। साथ ही भूमि सूखी होनी चाहिए उसमे ज्यादा नमी न हो , ज्यादा नमी भी पौधे को नुक्सान पहुँचाती है। 

गैलार्डिया फूल की प्रूनिंग 

गैलार्डिया फूल में 6 महीने तक फूल खिलते है। फूल खिलने के बाद इसके पेड़ सूख और मुरझा जाते है।  इन फूलो की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए इसके तनो को काट दिया जाता है। साथ ही बढ़ते मौसम में फूलो को डेडहेड करते रहना चाहिए ताकि यह फूलो को निरंतर खिलने के लिए बढ़ावा दे सके। गैलार्डिया फ्लॉवर की प्रूनिंग का काम पतझड़ के मौसम में किया जाता है , ऐसा करने से पौधे सूंदर और स्वस्थ बने रहते है। 

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पिकता और लोरेंजिया ये भी गैलार्डिया फूल की किस्में है। गैलार्डिया पौधे  में बड़े आयकर के फूल लगते है। बुवाई के लिए इसमें 300 ग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता रहती है। गैलार्डिया फूल की खेती के लिए , खेत की अच्छी से जुताई कर ले।  मिट्टी के भुरभुरा होने पर बीज की बुवाई करें। बुवाई करते समय फॉस्फोरस और पोटास को भी खेत में दे देना चाहिए , इससे भूमि की उर्वरकता बनी रहती है। गैलार्डिया की खहेति करने के लिए , बीजो को बोने के लिए अलग से नर्सरी तैयार की जाती है। यह नर्सरी ऊंची और समतल जगहों पर बनाई जाती है , एक एकड़ खेत में लगभग चार क्यारियां बनाई जाती है 3 फ़ीट चौड़ी और 10 फ़ीट लम्बी होती है। बुवाई करने से पहले बीजउपचार कर लेना चाहिए। 

इस तरीके से रंगीन फूल गोभी की खेती कर बेहतरीन आय कर सकते हैं

इस तरीके से रंगीन फूल गोभी की खेती कर बेहतरीन आय कर सकते हैं

रंगीन फूलगोभियां दिखने में बेहद ही सुंदर और आकर्षक होती हैं। वहीं, इसके साथ-साथ यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी काफी अच्छी होती हैं। आज के इस वैज्ञानिक युग में हर चीजें आसान नजर आती हैं। विज्ञान ने सब कुछ करके रख दिया है। यहां पर कोई भी असंभव चीज भी संभव नजर आती है। अब चाहे वह खेती-किसानी से संबंधित चीज ही क्यों ना हों। बाजार के अंदर विभिन्न तरह की रंग बिरंगी फूल गोभियां आ गई हैं। दरअसल, आज हम आपको इस रंग बिरंगी फूल गोभियों की खेती के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं। ताकि आप अपने खेत में सफेद फूल गोभी के साथ-साथ रंगीन फूल गोभी का भी उत्पादन कर सकें। बाजार में इन गोभियों की मांग दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। ऐसी स्थिति में आप इनको बाजार में बेचकर काफी शानदार मुनाफा कमा सकते हैं। रंगीन फूलगोभियां किसानों को काफी मुनाफा प्रदान करती हैं।

रंगीन फूल गोभी की खेती

भारत के कृषि वैज्ञानिकों ने रंगीन फूल गोभी की नवीन किस्म की खोज की है। यह गोभियां हरी, नीली, पीली एवं नारंगी रंग की होती हैं। इन विभिन्न तरह के रंगों की गोभी का सेवन करने से लोगों को बीमारियों से छुटकारा भी मिल रहा है। इसकी खेती किसी भी तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। आपको इसके लिए पर्याप्त सिंचाई की आवश्यकता होती है। भारतीय बाजार में इन गोभियों की मांग बढ़ती जा रही है। इससे किसान भी इसका उत्पादन कर काफी मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।

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फूलगोभी के कीट एवं रोग

रंगीन फूलगोभी की बिजाई

भारत में रंगीन फूलगोभी की अत्यधिक पैदावार झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में होती है। इसकी खेती करने का सबसे उपयुक्त समय शर्दियों का होता है। आप इसकी नर्सरी सितंबर एवं अक्टूबर में लगा सकते हैं। साथ ही, खेत की तैयारी के उपरांत इसे 20 से 30 दिन पश्चात खेतों में लगा सकते हैं। इसकी शानदार पैदावार के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान उपयुक्त माना गया है। वहीं, खेती की मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच रहना चाहिए। किसानों को

रंगीन फूलगोभी की खेती से कितनी आय अर्जित होती है

यह रंग-बिरंगी गोभियां खेतों में बिजाई के पश्चात 100 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। किसान भाई रंगीन फूल गोभी का एक एकड़ में उत्पादन कर 400 से 500 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। बाजार में लोग इस रंग को देखते ही बड़े जोर शोर से इसकी खरीदारी कर रहे हैं। साधारण गोभी की बाजार का बाजार में भाव 20 से 25 रुपये होता है। तो उधर इन रंग बिरंगी गोभियों की कीमत 40 से 45 रुपये तक की होती है। ऐसी स्थिति में किसान भाई इसकी खेती कर काफी शानदार मुनाफा कमा सकते हैं।
फूल गोभी की इन उन्नत किस्मों को उगाकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

फूल गोभी की इन उन्नत किस्मों को उगाकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान भाई फूलगोभी की उन्नत किस्मों के माध्यम से किसी भी सीजन में बेहतरीन उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। किसानों को इसकी खेती करने पर काफी अच्छी-खासी पैदावार अर्जित प्राप्त हो सकती है। 

बतादें, कि अच्छे उत्पादन के लिए जैविक खाद और खेत से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। फूलगोभी की खेती के माध्यम से किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। 

शायद आपको जानकारी हो कि फूलगोभी की खेती किसान किसी भी सीजन में कर सकते हैं। साथ ही, लोगों के द्वारा फूल गोभी का उपयोग सब्जी, सूप एवं अचार इत्यादि तैयार करने के लिए किया जाता है। 

क्योंकि इस सब्जी के अंदर विटामिन-बी की मात्रा के साथ प्रोटीन भी बाकी सब्जियों से कई गुना ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। इसी वजह से बाजार के अंदर इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। 

वर्तमान में दिल्ली में फूल गोभी की कीमत 60 से 100 रुपये प्रति किलो तक है। साथ ही, फूलगोभी की खेती के लिए ठंडी एवं आर्द्र जलवायु जरूरी होती है। 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि फूलगोभी की फसल में रोग लगने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। इसके संरक्षण के लिए बीजों की बुवाई से पूर्व ही कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित फफूंदनाशक से शोधन अवश्य करें।

फूलगोभी की अगेती, पिछेती और मध्यम किस्में

आईसीएआर, पूसा के वैज्ञानिकों ने किसानों को फूलगोभी की खेती से किसी भी सीजन में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए कुछ बेहतरीन किस्मों को विकसित किया है, जिनमें पूसा अश्विनी, पूसा मेघना, पूसा कार्तिक और पूसा कार्तिक शंकर आदि शामिल हैं।

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वहीं, फूल गोभी की अन्य अगेती किस्मों में - पूसा दिपाली, अर्ली कुवारी, अर्ली पटना, पन्त गोभी- 2, पन्त गोभी- 3, पूसा कार्तिक, पूसा अर्ली सेन्थेटिक, पटना अगेती, सेलेक्सन 327 और सेलेक्सन 328 आदि शम्मिलित हैं। 

इसके अतिरिक्त फूलगोभी की पछेती किस्मों में- पूसा स्नोबाल-1, पूसा स्नोबाल-2, पूसा स्नोबॉल-16 आदि शम्मिलित हैं। फूलगोभी की मध्यम किस्मों में - पूसा सिंथेटिक, पंत सुभ्रा, पूसा सुभ्रा, पूसा अगहनी उयर पूसा स्नोबॉल आदि शम्मिलित हैं।

फूल गोभी की खेती के लिए आवश्यक बातें इस प्रकार हैं

  • फूलगोभी की खेती के लिए आपको पहले खेत को समतल बनाएं, ताकि मिट्टी जुताई योग्य बन जाए।
  • फिर आप जुताई दो बार मिट्टी पलटने वाले हल से करें।
  • इसके बाद खेत में दो बार कल्टीवेटर चलाएं।
  • प्रत्येक जुताई के उपरांत पाटा जरूर लगाएं।
  • मिट्टी का PH मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए।
  • फूल गोभी की खेती के लिए बेहतरीन जल निकासी वाली बलुई दोमट मृदा और चिकनी दोमट मृदा उपयुक्त मानी जाती है।
  • बतादें, कि जिस मृदा में जैविक खाद की मात्रा ज्यादा हो वह फूलगोभी की पैदावार के लिए बेहद अच्छी होती है।

मई-जून में करें फूलगोभी की खेती मिलेगा शानदार मुनाफा

मई-जून में करें फूलगोभी की खेती मिलेगा शानदार मुनाफा

गोभी वर्गीय सब्जियों में फूलगोभी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी खेती विशेष तोर पर श्वेत, अविकसित व गठे हुए पुष्प पुंज की पैदावार के लिए की जाती है। 

इसका इस्तेमाल सलाद, बिरियानी, पकौडा, सब्जी, सूप और अचार इत्यादि निर्मित करने में किया जाता है। साथ ही, यह पाचन शक्ति को बढ़ाने में बेहद फायदेमंद है। यह प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन ‘ए’ तथा ‘सी’ का भी बेहतरीन माध्यम है।

फूलगोभी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

फूलगोभी की सफल खेती के लिए ठंडी और आर्द्र जलवायु सबसे अच्छी होती है। दरअसल, अधिक ठंड और पाला का प्रकोप होने से फूलों को काफी ज्यादा नुकसान होता है। 

शाकीय वृद्धि के दौरान तापमान अनुकूल से कम रहने पर फूलों का आकार छोटा हो जाता है। एक शानदार फसल के लिए 15-20 डिग्री तापमान सबसे अच्छा होता है।

फूलगोभी की प्रमुख उन्नत प्रजातियां 

फूलगोभी को उगाए जाने के आधार पर फूलगोभी को विभिन्न वर्गो में विभाजित किया गया है। इसकी स्थानीय तथा उन्नत दोनों तरह की किस्में उगाई जाती हैं। इन किस्मों पर तापमान और प्रकाश समयावधि का बड़ा असर पड़ता है। 

अत: इसकी उत्तम किस्मों का चयन और उपयुक्त समय पर बुआई करना बेहद जरूरी है। अगर अगेती किस्म को विलंब से और पिछेती किस्म को शीघ्र उगाया जाता है तो दोनों में शाकीय वृद्धि ज्यादा हो जाती है। 

नतीजतन, फूल छोटा हो जाता है और फूल देरी से लगते हैं। इस आधार पर फूलगोभी को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है – पहला –अगेती, दूसरा-मध्यम एवं तीसरा-पिछेती।

  • फूल गोभी की अगेती किस्में: अर्ली कुंआरी, पूसा कतिकी, पूसा दीपाली, समर किंग, पावस, इम्प्रूब्ड जापानी।
  • फूल गोभी की मध्यम किस्में: पंत सुभ्रा,पूसा सुभ्रा, पूसा सिन्थेटिक, पूसा स्नोबाल, के.-1, पूसा अगहनी, सैगनी, हिसार नं.-1 ।
  • फूल गोभी की पिछेती किस्में: पूसा स्नोबाल-1, पूसा स्नोबाल-2, स्नोबाल-16 ।

फूलगोभी के लिए जमीन की तैयारी

फूलगोभी की खेती ऐसे तो हर तरह की जमीन में की जा सकती। लेकिन, एक बेहतर जल निकासी वाली दोमट या बलुई दोमट जमीन जिसमें जीवांश की भरपूर मात्रा उपलब्ध हो, इसके लिए बेहद उपयुक्त मानी जाती है। 

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इसकी खेती के लिए बेहतर ढ़ंग से खेत को तैयार करना चाहिए। इसके लिए खेत को ३-४ जुताई करके पाटा मारकर एकसार कर लेना चाहिए।

फूलगोभी की खेती में खाद एवं उर्वरक

फूलगोभी की उत्तम पैदावार हांसिल करने के लिए खेत के अंदर पर्याप्त मात्रा में जीवांश का होना बेहद अनिवार्य है। खेत में 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट रोपाई के 3-4 सप्ताह पहले बेहतर ढ़ंग से मिला देनी चाहिए। 

इसके अतिरिक्त 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए। 

नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा आखिरी जुताई या प्रतिरोपण से पूर्व खेत में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। वहीं, शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर खड़ी फसल में 30 और 45 दिन बाद उपरिवेशन के तोर पर देना चाहिए।

फूलगोभी की खेती में बीजदर, बुवाई और विधि 

फूलगोभी की अगेती किस्मों का बीज डॉ 600-700 ग्राम और मध्यम एवं पिछेती किस्मों का बीज दर 350-400 ग्राम प्रति हेक्टेयर है। 

फूलगोभी की अगेती किस्मों की बुवाई अगस्त के अंतिम सप्ताह से 15 सितंबर तक कर देनी चाहिए। वहीं, मध्यम और पिछेती प्रजातियों की बुवाई सितंबर के बीच से पूरे अक्टूबर तक कर देनी चाहिए।

फूलगोभी के बीज सीधे खेत में नहीं बोये जाते हैं। अत: बीज को पहले पौधशाला में बुआई करके पौधा तैयार किया जाता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्रतिरोपण के लिए लगभग 75-100 वर्ग मीटर में पौध उगाना पर्याप्त होता है। 

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पौधों को खेत में प्रतिरोपण करने के पहले एक ग्राम स्टेप्टोसाइक्लिन का 8 लीटर पानी में घोलकर 30 मिनट तक डुबाकर उपचारित कर लें। उपचारित पौधे की खेत में लगाना चाहिए।

अगेती फूलगोभी के पौधों कि वृद्धि अधिक नहीं होती है। अत: इसका रोपण कतार से कतार 40 सेंमी. पौधे से पौधे 30 सेंमी. की दूरी पर करना चाहिए। 

परंतु, मध्यम एवं पिछेती किस्मों में कतार से कतार की दूरी 45-60 सेंमी. और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंमी. तक रखनी चाहिए।

फूलगोभी की खेती में सिंचाई प्रबंधन 

पौधों की अच्छी बढ़ोतरी के लिए मृदा में पर्याप्त मात्रा में नमी का होना बेहद जरूरी है। सितंबर माह के पश्चात 10 या 15 दिनों के अंतराल पर जरूरत के अनुरूप सिंचाई करते रहना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में 5 से 7 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए।

फूलगोभी की खेती में खरपतवार नियंत्रण

फूलगोभी में फूल तैयार होने तक दो-तीन निकाई-गुड़ाई से खरपतवार का नियन्त्रण हो जाती है, परन्तु व्यवसाय के रूप में खेती के लिए खरपतवारनाशी दवा स्टाम्प 3.0 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव रोपण के पहले काफी लाभदायक होता है।

फूलगोभी की खेती में निराई-गुड़ाई और मृदा चढ़ाना

पौधों कि जड़ों के समुचित विकास हेतु निकाई-गुड़ाई अत्यंत आवश्यक है। एस क्रिया से जड़ों के आस-पास कि मिटटी ढीली हो जाती है और हवा का आवागमन अच्छी तरह से होता है जिसका अनुकूल प्रभाव उपज पर पड़ता है। वर्षा ऋतु में यदि जड़ों के पास से मिटटी हट गयी हो तो चारों तरफ से पौधों में मिटटी चढ़ा देना चाहिए।

इस राज्य में कंदीय फूलों की खेती पर 50 प्रतिशत अनुदान मिलेगा, शीघ्र आवेदन करें

इस राज्य में कंदीय फूलों की खेती पर 50 प्रतिशत अनुदान मिलेगा, शीघ्र आवेदन करें

बिहार में राज्य सरकार की तरफ से कंदीय फूलों की खेती करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत तक सबसिडी प्रदान की जा रही है। योजना का फायदा उठाने के लिए कृषक भाई आधिकारिक साइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

बिहार सरकार की ओर से किसानों को फूलों का उत्पादन करने के लिए निरंतर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने फिलहाल एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत कंदीय फूल की खेती करने के लिए किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान देने का फैसला लिया है। 

योजना का फायदा उठाने के लिए किसान आधिकारिक साइट horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।

किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाऐगा

बतादें, कि बिहार सरकार ने प्रति हेक्टेयर कंदीय फूलों की खेती हेतु लागत 15 लाख रुपये रखी है। इस पर सरकार 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान करेगी। इस हिसाब से किसानों को सात लाख 50 हजार रुपये मिलेंगे। 

सब्सिडी का फायदा उठाने के लिए किसान आज ही आधिकारिक वेबसाइट horticulture.bihar.gov.in पर जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त वह अपने निकटतम उद्यान कार्यालय में सम्पर्क कर सकते हैं। 

योजना के अंतर्गत फायदा लेने के लिए किसानों को अपना आधार कार्ड, बैंक पासबुक की प्रति, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, फोन आदि अपने पास जरूर रखने होंगे। 

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बाजार में फूलों की प्रचंड मांग है

बतादें, कि कंदीय फूल को गमले व जमीन दोनों में उगाया जा सकता है। इन फूलों की सजावट के काम में जरूरत पड़ती है। साथ ही बुके में भी इन फूलों का उपयोग किया जाता है। 

बाजार में ये फूल अच्छी-खासी कीमत में बिकते हैं। किसान भाई कंदीय फूलों की खेती कर कम समय में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। जानिए किन फूलों को कंदीय फूल कहा जाता है। 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऑक्जेलिक, हायसिन्थ, ट्यूलिप, लिली, नर्गिसफ्रिजिआ, डेफोडिल, आइरिस, इश्किया, आरनिथोगेलम को कंदीय फूल कहा जाता है।

हॉलीहॉक पौधे की जाने सम्पूर्ण जानकारी

हॉलीहॉक पौधे की जाने सम्पूर्ण जानकारी

हॉलीहॉक पौधा एक प्रकार का फूल है जिसका वैज्ञानिक नाम alcea rosea है। यह फूल लगभग 5 -6 फुट ऊँचा होता है। यह फूल रंग बिरंगी फूलो और अपनी मनमोहक शक्ति के लिए प्रसिद्ध है। इस फूल का उपयोग ज्यादातर वानस्पतिक बाग़, उद्यानों और पेयजल की सुंदरता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। 

हॉलीहॉक यूरोप और एशिया का सूंदर पुष्पी पौधा है , इसे मल्लिका और गुलखैरा के नाम से भी जाना जाता है। इस फूल के पत्ते सफ़ेद और हरे रंग के होते है , जो की हृदय के आकार के होते है। इन फूलो में बहुत से औषिधीय गुण भी पाए जाते है। हॉलीहॉक एक बहुत ही महत्पूर्ण पौधा है , जिसका उपयोग बगीचे की सुंदरता बढ़ाने के लिए भी आमतौर पर किया जाता है। 

हॉलीहॉक की खेती कैसे करें ?

हॉलीहॉक की खेती ज्यादातर बगीचों और बालकनियों की सुंदरता को बढ़ाने के लिए करते है। इसमें सबसे पहले बीज की जाँच कर ले ,सबसे अच्छे बीज का चयन करें।  हॉलीहॉक की अच्छी खेती के लिए रेतीली मिटटी की आवश्यकता रहती है। उसके बाद बीजो को अच्छे से समान दूरी पर बो दे , उसके बाद बीज को मिटटी से अच्छे तरीके से ढक दे। 

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यह फूल ज्यादातर शुष्क और उष्णकटिबंधीय जगहों पर उगाया जाता है। हॉलीहॉक के पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए सूर्य की उचित रोशनी की भी आवश्यकता पड़ती है। 

हॉलीहॉक फूल के प्रकार क्या है ?

हॉलीहॉक फूल कई प्रकार का होता है और इन सब की अपनी अलग-अलग खासियत भी है। यह फूल रंगो के आधार पर भी अलग पाए जाते है। हॉलीहॉक फूल के मुख्य प्रकार ये है : मल्टीकलर हॉलीहॉक, मेसेंजर हॉलीहॉक, एलिगेंस हॉलीहॉक और अलस्विच हॉलीहॉक यह फूल दिखने में बहुत ही सूंदर और आकर्षक होते है। 

हॉलीहॉक का पौधा कहाँ पाया जाता है 

हॉलीहॉक का पौधा दुनिया भर में पाया जाता है, क्योंकि यह पौधा अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। यह फूल ज्यादातर सूखे इलाकों में पाया जाता है। यह एक वानस्पतिक प्रजाति है, जिसे गुड़हल के नाम से भी जाना जाता है। इस फूल का उत्पादन भारत के कई राज्यों में किया जाता है जैसे : झारखण्ड, ओड़िसा और छत्तीसगढ़। लेकिन यह फूल ज्यादातर पूर्वी भारत में पाया जाता है। हॉलीहॉक का पौधा बड़ी पत्तियों और फूलों के साथ काफी ऊँचा भी होता है। 

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हॉलीहॉक पौधे की देखभाल 

बुवाई के बाद पौधे की अच्छे से देखभाल की जाती है। इसमें समय पर पानी और खाद भी दिया जाता है, ताकि पौधे की अच्छे से वृद्धि की जा सके। बुवाई से पहले और बुवाई के बाद भी मिट्टी में उचित खाद का प्रयोग करना चाहिए। पौधे को नियमित पानी दे, ताकि भूमि की उर्वरकता बनी रहे। पौधे की उचित देखभाल से पौधा लम्बे समय तक सूंदर फूल प्रदान करेगा। समय पर पौधे में नराई का काम भी किया जाना चाहिए, ताकि पौधा का अच्छे से विकास हो सके। 

हॉलीहॉक पौधे के मुख्य चिकित्सक गुण 

हॉलीहॉक के पौधे का उपयोग बहुत से रोगों में भी किया जाता है। हॉलीहॉक के पौधे के बहुत से औषिधीय गुण भी है।  इसका इस्तेमाल हम चक्कर आने पर , हृदय रोग होने पर साथ ही कफ जैसे रोगों से छुटकारा पाने के लिए भी किया जाता है।

1- हॉलीहॉक के पौधे का इस्तेमाल रूखी त्वचा के लिए भी किया जाता है। साथ ही इसे त्वचा के उपचार के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। यह एक अमूल्य पौधा है जिसका उपयोग बहुत सी चीजों में किया जाता है। 

2 -हॉलीहॉक के पौधे में ग्लूकोसाइड नामक तत्व भी पाया जाता है, जो शरीर के अंदर रक्तचाप को संतुलित बनाये रखने में मदद करता है। साथ ही यह शरीर के अंदर अनीमिया की कमी को भी दूर करने में सहायक सिद्ध होता है। 

सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, इसकी खेती रबी, जायद और खरीफ के तीनों सीजन में की जा सकती है। बतादें, कि सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मार्च के माह को माना जाता है। इस फसल को कृषकों के बीच नकदी फसल के रूप में भी पहचाना जाता है। 

सूरजमुखी की खेती से किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। इसके बीजों से 90-100 दिनों के समयांतराल में 45 से 50% तक तेल हांसिल किया जा सकता है। 

सूरजमुखी की फसल को शानदार विकास देने के लिए 3 से 4 बार सिंचाई की जाती है, ताकि इसके पौधे सही तरीके से पनप सकें। अगर हम इसकी टॉप 5 उन्नत किस्मों की बात करें, तो इसमें एमएसएफएस 8, केवीएसएच 1, एसएच 3322, ज्वालामुखी और एमएसएफएच 4 आती हैं।

1. सूरजमुखी की एमएसएफएस-8 (MSFS-8) किस्म 

सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में एमएसएफएस-8 भी शम्मिलित है। इस किस्म के सूरजमुखी के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 से 200 सेमी तक रहती है। एमएसएफएस-8 सूरजमुखी के बीज में 42 से 44% तक तेल की मात्रा पाई जाती है।

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किसान को सूरजमुखी की इस फसल को तैयार करने में 90 से 100 दिनों का वक्त लगता है। MSFS-8 किस्म की सूरजमुखी फसल की यदि एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जो इससे लगभग 6 से 7.2 क्विंटल तक उपज मिलती है। 

2. सूरजमुखी की केवीएसएच-1 (KVSH-1) किस्म 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में शम्मिलित है, जो कि शानदार उत्पादन देती है। सूरजमुखी के इस किस्म वाले पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 से 180 सेमी तक होती है। 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी के बीज से लगभग 43 से 45% तक तेल प्राप्त होता है। किसान को सूरजमुखी की इस उन्नत किस्म को विकसित करने में 90 से 95 दिनों की समयावधि लगती है। अगर केवीएसएच-1 सूरजमुखी की फसल को एकड़ भूमि पर लगाया जाए, तो इससे तकरीबन 12 से 14 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है। 

3. सूरजमुखी की एसएच-3322 (SH-3322) किस्म 

सूरजमुखी की शानदार उपज देने वाली किस्मों में एसएच-3322 भी शुमार है। इस सूरजमुखी की उन्नत किस्म के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 137 से 175 सेमी तक पाई जाती है। एसएच-3322 सूरजमुखी के बीज से लगभग 40-42% फीसद तक तेल की मात्रा हांसिल होती है। 

किसान को एसएच-3322 किस्म की सूरजमुखी फसल को विकसित करने में 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। सूरजमुखी की एसएच-3322 किस्म को अगर एक एकड़ जमीन पर उगाया जाए, तो इससे तकरीबन 11.2 से 12 क्विंटल तक की उपज हांसिल हो सकती है। 

4. सूरजमुखी की ज्वालामुखी (Jwalamukhi) किस्म 

सूरजमुखी की ज्वालामुखी किस्म के बीजों में 42 से 44% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। किसान को इसकी फसल तैयार करने में 85 से 90 दिनों का वक्त लगता है। 

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ज्वालामुखी पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 सेमी तक रहती है। सूरजमुखी की इस किस्म को एक एकड़ भूमि पर लगाने से लगभग 12 से 14 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है। 

5. सूरजमुखी की एमएसएफएच-4 (MSFH-4) किस्म

सूरजमुखी की इस एमएसएफएच-4 किस्म की खेती रबी और जायद के सीजन में की जाती है। इस फसल के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 सेमी तक पाई जाती है। 

एमएसएफएच-4 सूरजमुखी के बीजों में तकरीबन 42 से 44% तक तेल की मात्रा विघमान रहती है। इस किस्म की फसल को तैयार करने में किसान को 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। 

अगर किसान इस किस्म की फसल को एक एकड़ खेत में लगाते हैं, तो इससे करीब 8 से 12 क्विंटल तक की उपज बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है।

बागवानी: मौसमी आधार पर फूलों की खेती से जुड़ी अहम जानकारी

बागवानी: मौसमी आधार पर फूलों की खेती से जुड़ी अहम जानकारी

आजकल भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपने बाग बगीचों में अलग अलग तरह के फूलों को उगाकर मानसिक सुकून हांसिल कर सकते हैं। आज हम आपको मौसमिक आधार पर कुछ विशेष फूलों की जानकारी प्रदान करेंगे। 

आप इन पौधों को गमलों, बरामदों, टोकरियों और खिड़कियों में बड़ी ही आसानी से उगा सकते हैं। सालाना या मौसमी फूल वाले पौधे उन्हें कहा जाता है, जो अपना जीवन चक्र एक वर्षा या एक मौसम में पूर्ण कर लेते हैं ।

फूलों के पौध तैयार करने की विधि

मौसमी फूलों के पौधे अलग अलग तरह से तैयार किये जाते हैं। दरअसल, कुछ फूलों के पौधों को पहले पौधशाला में तैयार करने के पश्चात क्यारियों में लगायें। 

इसके उपरांत विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के बीज सीधे क्यारियों में लगा दिये जाते हैं। इनके बीज काफी छोटे होते हैं। इनकी सही तरीके से बेहतर देखभाल करके पौध को तैयार कर लिया जाता है।

मृदा चयन एवं तैयारी 

किसान भाई इस तरह की जमीन का चुनाव करें, जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश हों, सिंचाई और जल निकासी की अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हों। फूलों की खेती के लिये रेतीली दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 

जमीन को तकरीबन 30 सेमी की गहराई तक खोदें, गोबर की खाद, उर्वरक, आकार के अनुरूप मिश्रित करें। (1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में 25-30 क्विंटल गोबर की खाद) वर्षा ऋतु में पौधशाला की देखभाल अन्य मौसमों की अपेक्षा में ज्यादा करें।

बीज की बुवाई और रोपाई

क्यारियों को आकार के मुताबिक एकसार करके 5 सेमी के फासले पर गहरी पंक्तियाँ निर्मित करके उनमें 1 सेमी की दूरी पर बीज रोपण करें। 

बीज बुवाई के दौरान इस बात का विशेष ख्याल रखें कि बीज एक सेमी से ज्यादा गहरा ना हो पाए। इसके बाद में इसको हल्की परत से ढकें। सुबह शाम हजारे से पानी दें। जब पौध तकरीबन 15 सेमी ऊँची हो जाए तब रोपाई करें।

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क्यारियों में रोपाई एक निश्चित दूरी पर ही करें। सबसे आगे बौने पौधे 30 सेमी तक ऊँचाई वाले 15-30 सेमी दूरी पर, मध्यम ऊँचाई 30 से 75 सेमी वाले पौधे, 35 सेमी से 45 सेमी तथा लंबे 75 सेमी से ज्यादा ऊँचाई रखने वाले पौधे 45 सेमी से 50 सेमी के फासले पर रोपाई करें।

फूलों की देखरेख से जुड़े बिंदु 

सिंचाई: वर्षा ऋतु में सिंचाई की अधिक जरूरत नहीं पड़ती है। अगर काफी वक्त तक वर्षा ना हो तो उस स्थिति में जरूरत के अनुरूप सिंचाई करें। शरद ऋतु में 7-10 दिन एवं ग्रीष्म ऋतु में 4-5 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार जमीन से नमी और पोषक तत्व ग्रहण करते रहते हैं, जिसके चलते पौधों के विकास तथा बढ़ोतरी दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। अर्थात उनकी रोकथाम के लिए खुरपी की मदद से घास-फूस निकालते रहें।

खाद एवं उर्वरक: पोषक तत्वों की उचित मात्रा, भूमि, जलवायु और पौधों की प्रजाति पर निर्भर करता है। आम तौर पर यूरिया- 100 किलोग्राम, सिंगल सुपरफॉस्फेट 200 किलो ग्राम एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश 75 किलोग्राम का मिश्रण बनाकर 10 किलोग्राम प्रति 1000 वर्ग मीटर की दर से जमीन में मिला दें। उर्वरक देने के दौरान ख्याल रखें कि जमीन में पर्याप्त नमी हो।

तरल खाद: मौसमी फूलों की सही और बेहतर बढ़वार फूलों के बेहतरीन उत्पादन के लिये तरल खाद अत्यंत उपयोगी मानी गयी है। गोबर की खाद और पानी का मिश्रण उसमें थोड़ी मात्रा में नाइट्रोजन वाला उर्वरक मिलाकर देने से फायदा होता है ।

जलवायु एवं मौसमिक आधार पर फूलों का विभाजन 

वर्षा कालीन मौसमी फूल

इन पौधों के बीजों की अप्रैल-मई में पौधशाला में बोवाई करें और जून-जुलाई में इसकी पौध को क्यारियों या गमलों में लगायें। मुख्य रूप से डहेलिया, वॉलसम, जीनिया, वरबीना आदि के पौध रोपित करें ।

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शरद कालीन मौसमी फूल 

  1. इन पौधों के बीजों को अगस्त-सितम्बर माह में पौधशाला में बोयें एवं अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में गमलों या क्यारियों के अंतर्गत रोपाई करें। इन पर फूल लगना करीब फरवरी-मार्च में शुरू होते हैं। प्रमुख रूप से स्वीट सुल्तान, वार्षिक गुलदाउदी, क्लार्किया, कारनेशन, लूपिन, स्टाक, पिटुनिया, फ्लॉक्स, वरवीना, पैंजी, एस्टर और कार्नफ्लावर आदि के पौधे लगायें ।

ग्रीष्म कालीन मौसमी फूल 

इन पौधों के बीज जनवरी में बोयें तथा फरवरी में लगायें इन पर अप्रैल से जून तक फूल रहते हैं। मुख्य रूप से जीनिया, कोचिया, ग्रोमफ्रीना, एस्टर, गैलार्डिया, वार्षिक गुलदाउदी लगायें।

बीज इकठ्ठा करना 

बीज के लिए फल चुनते समय फूल का आकार, फूल का रंग, फूल की सेहत अच्छी ही चुननी चाहिये। जब फूल पक कर मुरझा जायें तब उसे सावधानी से काट कर धूप में सुखा लें फिर सावधानी से मलकर उनके बीज निकाल लें और फिर उन्हें शीशे के बर्तन या पॉलीथिन की थैली में बंद कर लें।

मौसमी फूलों के प्रमुख पौधे इस प्रकार हैं 

बाड़ के लिये पौधे: गुलदाउदी, गेंदा।

गमले में लगाने हेतु: गेंदा, कार्नेशन, वरवीना, जीनिया, पैंजी आदि ।

पट्टी, सड़क या रास्ते पर लगाने हेतु: पिटुनिया, डहेलिया, केंडी टफ्ट आदि ।

सुगंध के लिये पौधे: स्वीट पी, स्वीट सुल्तान, पिटुनिया, स्टॉक, वरबीना, बॉल फ्लॉक्स ।

क्यारियों में लगाने हेतु: एस्टर, वरवीना, फ्लॉस्क, सालविया, पैंजी, स्वीट विलयम, जीनिया।

शैल उद्यानों में लगाने हेतु: अजरेटम, लाइनेरिया, वरबीना, डाइमार्फोतिका, स्वीट एलाइसम आदि ।

लटकाने वाली टोकरियों में लगाने हेतु: स्वीट, लाइसम, वरवीना, पिटुनिया, नस्टरशियम, पोर्तुलाका, टोरोन्सिया। 

फूलगोभी के कीट एवं रोग

फूलगोभी के कीट एवं रोग

फूलगोभी की अगेती किस्म के सापेक्ष पछेती किस्मों में खाद एवं उर्वरकों की ज्यादा आवश्यकता होती है। सामान्यतया गोभी के लिए करीब 300 कुंतल  सड़ी हुई गोबर की खाद के अलावा 120 किलोग्राम नत्रजन एवं 60—60 किलोग्राम फास्फोरस एवं पोटाश आ​खिरी जाते में मिला देनी चाहिए। इसकी अगेती किस्मों में कीट एवं रोगों का प्रभाव ज्यादा रहता है लिहाजा बचाव का काम नर्सरी से ही शुरू कर देना चाहिए। 

नर्सरी प्रबंधन

 


 फूलगोभी की पौध तैयार करते समय की सावाधानी फसल को आखिरी तक काफी हद तक स्वस्थ रखती है। ढ़ाई बाई एक मीटर की सात क्यारियों में करीब 200 ग्राम बीज बोया जा सकता है। क्यारियों को बैड के रूप मेें करीब 15 सेण्टीमीटर उठाकर बनाएं। गोबर की खाद हर क्यारी में पर्याप्त हो। बीज बोने के बाद भी छलने से छानकर गोबर की खाद का बुरकाव करें। इसके बाद हजारे से क्यारियों में सिंचाई करते रहें। अगेती किस्मों में पौधे और पंक्ति की दूरी 45 एवं पछती किस्मों में 60 सेण्टीमीटर रखें। अगेती किस्मों में पांच छह दिन बाद एवं पछेती किस्मों में 12 से 15 दिन बाद सिंचाई करें। गोभी में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई सतत रूप से जारी रहनी चाहिएं ।

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रोगों में पौध गलन एवं डैम्पिंग आफ रोग एक प्रकार की फफूंद से होता है। इसके कारण पौधों को अं​कुरित होने के साथ ही हानि होती है। बचाव हेतु दो से तीन ग्राम कैप्टान से एक किलाग्राम बीज को उपचारित करके बोएंं। भूमिशोधन हेतु फारमेल्डीहाइड 160ml को ढाई लीटर पानी में घोलकर जमीन पर छिड़काव करें। काला सड़न रोग के प्रभाव से प्रारंभ में पत्तियों पर वी आकार की आकृति बनती है जो बाद में काली पड़ जाती है। बचाव हेतु नर्सरी डालाते समय बीज को 10 प्रतिशत ब्लीचिंग पाउडर के घोल अथवा Streptocycline से उपचारित करके बोना चाहिए। गोभी में गिडार या सूंडी नियंत्रण हेतु पांच प्रतिशत मैला​​थियान धूल का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए।

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ (Sunflower Farming in Hindi)

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ (Sunflower Farming in Hindi)

सूरजमुखी किसानों के लिए बहुत ही मूल्यवान फसल मानी जाती हैं। सूरजमुखी की फसल से जुड़े विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां जिसको जानकर आप सूरजमुखी के बहुत सारे फायदे से जागरूक हो जाएंगे। किसानों के अनुसार सूरजमुखी एक तिलहनी फसल है। किसानों का यह कहना है कि सूरजमुखी की फसल बेहतर मुनाफा देने वाली फसल है। जिसको आम भाषा में नकदी फसल भी कहा जाता है। प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार सूरजमुखी की पहली खेती उत्तराखंड के पंतनगर में हुई थी जिसका समय लगभग 1969 था। किसान सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी और जायद इन तीनों मौसमों में करते हैं। आइये जानते हैं सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ । कुछ सालों के अनुमान से यह कहा जा सकता है, कि सूरजमुखी की खेती किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है। तथा किसान इसकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि भी कर रहे हैं जिससे वह उचित मूल्य प्राप्त कर सकें। 

सूरजमुखी की कटाई मई महीने के अंत में ऐसे करें

किसान के लिए सूरजमुखी की फसल बहुत ही फायदेमंद होती है। इसीलिए वह इसकी खास देखभाल करते हैं और इसकी कटाई पर भी विशेष रूप से ध्यान देते हैं। ताकि इस फसल को किसी भी तरह का कोई नुकसान ना हो, जिससे उनको आगे नुकसान सहना पड़े। किसान सूरजमुखी की बुवाई फरवरी के महीने से करना शुरू कर देते हैं ताकि मई के आखिरी महीने में वह इस की कटाई कर अच्छी फसल को प्राप्त कर सकें। यदि सूरजमुखी की बुवाई सही टाइम पर ना करें। तो भारी बारिश हो जाने के बाद पैदावार में काफी हद तक नुकसान भी हो सकता है। सूरजमुखी की फसल की कटाई मई के अंत में करना बहुत ही उचित होता है। 

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सूरजमुखी के लिए जलवायु और भूमि

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ - sunflower farm -सूरजमुखी के लिए जलवायु और भूमि 

 सूरजमुखी की खेती के लिए अच्छी जलवायु और भूमि की बहुत ही आवश्यकता होती है। सूरजमुखी की फसलें खरीफ रबी जायद तीनों मौसमों में इसकी खेती की जाती है। सूरजमुखी की खेती के लिए शुष्क जलवायु की बहुत ही आवश्यकता होती है। सूरजमुखी की खेती आप किसी भी भूमि में कर सकते हैं। सूरजमुखी की खेती के लिए अम्लीय एवम क्षारीय भूमि उचित नहीं होती खेती के लिए। वैसे तो आप किसी भी मिट्टी में सूरजमुखी की खेती कर सकते हैं। लेकिन सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे उचित दोमट मिट्टी होती है। 

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सूरजमुखी की फसल के लिए खेत को किस प्रकार तैयार करते हैं:

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ : सूरजमुखी की फसल को तैयार करने के लिए किसान निम्न प्रकार से खेत को तैयार करते हैं जैसे: किसान सूरजमुखी की खेती जायद मौसम में करते हैं जिससे उनको नमी वाली भूमि की प्राप्ति हो सके। किसान भूमि की ऊपरी परत को चीरकर जुताई करने तथा बीज बोने की प्रक्रिया को शुरू करते है। खेत की पहली जुताई किसान हल द्वारा करते हैं। तीन से चार दिन बाद खेत की जुताई कल्टीवेटर से करना जरूरी होता है। मिट्टी का  भुरभुरा पन समय-समय पर देखते रहना चाहिए ताकि उस में नमी बरकरार रहे। 

सूरजमुखी की बुवाई:

surajmukhi ki buvai - सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ 

 सूरजमुखी की अच्छी फसल को प्राप्त करने के लिए आपको कुछ इस तरह से बुवाई करनी चाहिए: सर्वप्रथम आपको सबसे पहले बीज को रात में भिगोकर रखना होगा। भिगोने के बाद आपको करीबन 3 से 4 घंटा बीज को छांव में रखना होगा। शाम होने पर आपको सुखाई हुई बीज को बोना शुरू कर देना चाहिए। सूरजमुखी की फसल के लिए बीज की अलग-अलग मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। इसमें आपको संकुल या सामान्य बीजों की आवश्यकता पड़ती है।फसल की बुवाई के लिए आपको करीबन 12 से 15 किलोग्राम प्रति हैक्टर बीज लेना चाहिए। यदि आपको यह आभास हो जाए। कि बीज में जमाव की गुणवत्ता नहीं है तो आपको ज्यादा से ज्यादा बुवाई के लिए बीज लेनी चाहिए। सूरजमुखी की बुवाई के लिए लगभग 2 से 2.5 ग्राम थीरम प्रतिकिलो ग्राम बीज को शोधित कर लेना चाहिए।

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सूरजमुखी फसल की सिंचाई का समय:

फसल की अच्छी प्राप्ति के लिए सिंचाई का समय समय पर ध्यान रखना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। किसान सूरजमुखी फसल की पहली सिंचाई बुवाई करने के बाद 20 से 25 दिन के उपरांत करते हैं।किसान यह सिंचाई छिड़काव के रूप में भी करते हैं।10 से 15 दिन के बीच इसकी दोबार सिंचाई करनी होती है। सूरजमुखी फसल की सिंचाई करीबन 5 से 6 बार करनी होती है।जब खेतों में सूरजमुखी के फूल निकल आए तो हल्की सिंचाई करने चाहिए। ताकि पौधे जमीन में ना गिर सके। यदि आप भारी सिंचाई करेंगे तो पानी के प्रभाव से पौधे गिरने लगेंगे। 

सूरजमुखी की फसल के लिए मिट्टी की मात्रा :

सूरजमुखी की फसल के लिए लगभग 10 से 15 सेंटीमीटर मिट्टी की आवश्यकता पड़ती है। नत्रजन की टापड्रेसिंग करने के बाद पौधों पर यह मिट्टी चढ़ाई जाती है।किसान हमेशा इस चिंता में रहते हैं। कि सूरजमुखी का पौधा ना गिर जाए, क्योंकि यह  आकार में बहुत बड़ा होता है।जिसकी वजह से किसान को इनके गिरने का भय लगा रहता है।मिट्टी चढ़ाने से इनका संतुलन बराबर बना रहता है। 

सूरजमुखी फसल की सुरक्षा:

surajmukhi ki suraksha - सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ 

 फसल को कीटनाशक कीटों से सुरक्षा प्रदान करने तथा दीमक से बचाने के लिए कई तरह के रसायनों का प्रयोग किसान फसल की सुरक्षा के लिए करते हैं। किसान फसलों की सुरक्षा के लिए मिथाइल ओडिमेंटान में लगभग 1 लीटर तथा 25ई सी साथ ही साथ फेन्बलारेट 750 मिली लीटर  प्रति हैक्टर के साथ लगभग 800 से 100 लीटर पानी में मिक्स कर फसलों पर छिड़काव करते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा सूरजमुखी फसलों की सुरक्षा कीटों से होती है। इस पोस्ट में हमने सूरजमुखी फसल से जुड़ी विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां आपको दी है। जैसे मई के महीने में किस प्रकार सूरजमुखी फसल की कटाई कैसे करें, जलवायु और भूमि की उपयोगिता,  बुवाई तथा सिंचाई आदि की पूर्ण जानकारी, हमारी इस पोस्ट में मौजूद है। यदि आप हमारी दी हुई जानकारी से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं। तो कृपया आप ज्यादा से ज्यादा हमारी इस पोस्ट को अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें।

ठंडी और आर्द्र जलवायु में रंगीन फूल गोभी की उपज कर कमायें अच्छा मुनाफा, जानें उत्पादन की पूरी प्रक्रिया

ठंडी और आर्द्र जलवायु में रंगीन फूल गोभी की उपज कर कमायें अच्छा मुनाफा, जानें उत्पादन की पूरी प्रक्रिया

छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग व्यक्ति के जीवन में रंगो का महत्वपूर्ण स्थान होता है। विभिन्न प्रकार के रंग लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं।लेकिन क्या आपको पता है कि अब ऐसी ही रंगीन प्रकार की फूल गोभी (phool gobhee; cauliflower) का उत्पादन कर, सेहत को सुधारने के अलावा आमदनी को बढ़ाने में भी किया जा सकता है। फूलगोभी के उत्पादन में उत्तरी भारत के राज्य शीर्ष पर हैं, लेकिन वर्तमान में बेहतर वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में भी फूलगोभी का उत्पादन किया जा रहा है।

फूलगोभी में मिलने वाले पोषक तत्व :

स्वास्थ्य के लिए गुणकारी फूलगोभी में पोटेशियम और एंटीऑक्सीडेंट तथा विटामिन के अलावा कई जरूरी प्रकार के मिनरल भी पाए जाते हैं। शरीर में बढ़े रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के नियंत्रण में भी फूल गोभी का महत्वपूर्ण योगदान है। किसी भी प्रकार की रंगीन फूल गोभी के उत्पादन के लिए ठंडी और आर्द्र जलवायु अनिवार्य होती है। उत्तरी भारत के राज्यों में सितंबर महीने के आखिरी सप्ताह और अक्टूबर के शुरुआती दिनों से लेकर नवम्बर के पहले सप्ताह में 20 से 25 डिग्री का तापमान रहता है, वहीं दक्षिण भारत के राज्यों में यह तापमान वर्ष भर रहता है, इसलिए वहां पर उत्पादन किसी भी समय किया जा सकता है।


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रंगीन फूलगोभी की लोकप्रिय और प्रमुख किस्में :

वर्तमान में पीले रंग और बैंगनी रंग की फूलगोभी बाजार में काफी लोकप्रिय है और किसान भाई भी इन्हीं दो किस्मों के उत्पादन पर खासा ध्यान दे रहे हैं। [caption id="attachment_11024" align="alignnone" width="357"]पीली फूल गोभी (Yellow Cauliflower) पीली फूल गोभी[/caption] [caption id="attachment_11023" align="alignnone" width="357"]बैंगनी फूल गोभी (Purple Cauliflower) बैंगनी फूल गोभी[/caption] पीले रंग वाली फूलगोभी को केरोटिना (Karotina) और बैंगनी रंग की संकर किस्म को बेलिटीना (Belitina) नाम से जाना जाता है।

कैसे निर्धारित करें रंगीन फूलगोभी के बीज की मात्रा और रोपण का श्रेष्ठ तरीका ?

सितंबर और अक्टूबर महीने में उगाई जाने वाली रंगीन फूलगोभी के बेहतर उत्पादन के लिए पहले नर्सरी तैयार करनी चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्र के खेत में नर्सरी तैयार करने में लगभग 250 से 300 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

कैसे करें नर्सरी में तैयार हुई पौध का रोपण ?

तैयार हुई पौध को 5 से 6 सप्ताह तक बड़ी हो जाने के बाद उन्हें खेत में कम से कम 60 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। रंगीन फूलगोभी की बुवाई के बाद में सीमित पानी से सिंचाई की आवश्यकता होती है, अधिक पानी देने पर पौधे की वृद्धि कम होने की संभावना होती है।

कैसे करें खाद और उर्वरक का बेहतर प्रबंधन ?

जैविक खाद का इस्तेमाल किसी भी फसल के बेहतर उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है, इसीलिए गोबर की खाद इस्तेमाल की जा सकती है।सीमित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग उत्पादकता को बढ़ाने में सहायता प्रदान कर सकता है। समय रहते मृदा की जांच करवाकर पोषक तत्वों की जानकारी प्राप्त करने से उर्वरकों में होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सकता है। यदि मृदा की जांच नहीं करवाई है तो प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 120 किलोग्राम नाइट्रोजन और 60 किलोग्राम फास्फोरस के अलावा 30 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल किया जा सकता है। गोबर की खाद को पौध की बुवाई से पहले ही जमीन में मिलाकर अच्छी तरह सुखा देना चाहिए। निरन्तर समय पर मिट्टी में निराई-गुड़ाई कर अमोनियम और बोरोन जैसे रासायनिक खाद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।


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कैसे करें खरपतवार का सफलतापूर्वक नियंत्रण ?

एक बार पौध का सफलतापूर्वक रोपण हो जाने के बाद निरंतर समय पर निराई-गुड़ाई कर खरपतवार को खुरपी मदद से हटाया जाना चाहिए। खरपतवार को हटाने के बाद उस स्थान पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, जिससे दुबारा खरपतवार के प्रसार को रोकने में मदद मिल सके।

रंगीन फूलगोभी में होने वाले प्रमुख रोग एवं उनका इलाज :

कई दूसरे प्रकार के फलों और सब्जियों की तरह ही रंगीन फूलगोभी भी रोगों से ग्रसित हो सकती है, कुछ रोग और उनका इलाज निम्न प्रकार है :-
  • सरसों की मक्खी :

यह एक प्रकार कीट होते हैं, जो पौधे के बड़े होने के समय फूल गोभी के पत्तों में अंडे देते हैं और बाद में पत्तियों को खाकर सब्जी की उत्पादकता को कम करते हैं।

इस रोग के इलाज के लिए बेसिलस थुरिंगिएनसिस (Bacillus thuringiensis) के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

इसके अलावा बाजार में उपलब्ध फेरोमोन ट्रैप (pheromone trap) का इस्तेमाल कर बड़े कीटों को पकड़ा जाना चाहिए।

यह रोग छोटे हल्के रंग के कीटों के द्वारा फैलाया जाता है। यह छोटे कीट, पौधे की पत्तियों और कोमल भागों का रस को निकाल कर अपने भोजन के रूप में इस्तेमाल कर लेते हैं, जिसकी वजह से गोभी के फूल का विकास अच्छे से नहीं हो पाता है।

[caption id="attachment_11030" align="alignnone" width="800"]एफिड रोग (cauliflower aphid) एफिड रोग[/caption]

इस रोग के निदान के लिए डाईमेथोएट (Dimethoate) नामक रासायनिक उर्वरक का छिड़काव करना चाहिए।

  • काला विगलन रोग :

फूल गोभी और पत्ता गोभी प्रकार की सब्जियों में यह एक प्रमुख रोग होता है, जो कि एक जीवाणु के द्वारा फैलाया जाता है। इस रोग की वजह से पौधे की पत्तियों में हल्के पीले रंग के धब्बे होने लगते हैं और जड़ का अंदरूनी हिस्सा काला दिखाई देता है। सही समय पर इस रोग का इलाज नहीं दिया जाए तो इससे तना कमजोर होकर टूट जाता है और पूरे पौधे का ही नुकसान हो जाता है।

इस रोग के इलाज के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइड (copper oxychloride) और स्ट्रैप्टो-साइक्लीन (Streptocycline)  का पानी के साथ मिलाकर एक घोल तैयार किया जाना चाहिए, जिसका समय-समय पर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

यदि इसके बावजूद भी इस रोग का प्रसार नहीं रुकता है तो, रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर इकट्ठा करके उन्हें जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।

इसके अलावा रंगीन फूलगोभी में आर्द्रगलन और डायमंड बैकमॉथ (Diamondback Moth) जैसे रोग भी होते हैं, इन रोगों का इलाज भी बेहतर बीज उपचार और वैज्ञानिक विधि की मदद से आसानी से किया जा सकता है। आशा करते हैं Merikheti.com के द्वारा हमारे किसान भाइयों को हाल ही में बाजार में लोकप्रिय हुई नई फसल 'रंगीन फूलगोभी' के उत्पादन के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में आप भी बेहतर लागत-उत्पादन अनुपात को अपनाकर अच्छी फसल ऊगा पाएंगे और समुचित विकास की राह पर चल रही भारतीय कृषि को सुद्रढ़ बनाने में अपना योगदान देने के अलावा स्वंय की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बना पाएंगे।